जून 25, 2013

रंगीन तितली

दोस्तों,

अभी कुछ ही दिन पहले मैं एक ऐसे लड़के को जानता था जिसने आत्महत्या कर ली........उसी वाकये को मैंने यहाँ शब्दों में ढालने की कोशिश की है......ये पोस्ट एक सत्य घटना से प्रेरित है और बहुत गहरे सवाल छोड़ती है.......कि आखिर क्यों ऐसा होता है ? लोग किसी के दिल से क्यों खेलते हैं ?........फिर क्या 'आत्महत्या' कोई सही उपाय है ?......मेरी नज़र में हरगिज़ नहीं.....जीवन ईश्वर का दिया एक अनमोल उपहार है उसे ख़त्म करने का उसके सिवा किसी को अधिकार नहीं......युवाओं को ये सन्देश है कि वो जीवन के महत्व को समझे.....माना प्यार बहुत कुछ है पर सब कुछ नहीं ।उम्मीद है आप लोगों को पसंद आये......अपनी निष्पक्ष राय रखे । 
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सुना, कल रात उसने आत्महत्या कर ली.........

सत्रह बरस की कच्ची उम्र में घर छोड़ा था उसने
'बड़ा आदमी' बनने के लिए वो गाँव से
'बड़े शहर' में पढ़ने को चला था
अपने सब सपने साकार करने को चला था,

नया माहौल, नए दोस्त सभी कुछ मिला
भूल गया धीरे-धीरे पीछे का सिलसिला, 
देखते ही देखते 'बड़े शहर' का रंग चढ़ा
जेब में पिता के भेजे पैसे, हाथ में सिगरेट 
पढ़ाई तो जैसे कहीं बहुत पीछे छूट गई, 

उसे 'बड़े शहर' की एक रंगीन तितली मिली 
जो उस के इर्द गिर्द मंडराती पाई जाने लगी,
तितली धीरे-धीरे फूल का रस चूसने लगी,

वो गाँव का नादाँ छोकरा इस आँख-मिचोली 
को दिल से लगा तितली से प्यार करने लगा,
पर तितली कब किसी फूल पर सदा रही है,

जब फूल का रस पीकर उसका दिल भर गया
तो वो फुर्र से दूसरे फूल की और उड़ चली,
तितली जाते-जाते बहुत गहरी गंध छोड़ गई 
दूसरा फूल मिलते ही उसे बिलकुल भूल गई 
सब कुछ खोकर ये फूल मुरझा सा गया, 

बड़े शहरों की जिंदगी का अकेलापन,
धोखा , छल, फरेब इससे अंजान था वो,
इस सब को सहने की ताब न ला सका
अकेलेपन ने इस दर्द को और बढ़ा दिया, 
किसी नाज़ुक से पल में वो बहक गया 
आख़िर उसने वही कदम उठा लिया 
'बड़े शहर' ने एक मासूम लड़के को 
फिर से निगल लिया............

सुना, कल रात उसने आत्महत्या कर ली.........

जून 16, 2013

तू ही तो है माँ....

प्रिय साथियों,

कुछ दिनों की निजी मसरूफियत के चलते नेट-जगत से दूरी सी बनती जा रही है इसके लिए आप सबसे माफ़ी का तलबगार हूँ........उम्मीद है आप सब अल्लाह के फज़ल से अच्छे होंगे और दुआ है कि आगे भी अच्छे रहे।

आज मेरी तरफ से ये ग़ज़ल दुनिया कि तमाम "माँ" के नाम.....वो माँ जो हमे सब कुछ देती है बिना कुछ माँगे जिसका क़र्ज़ कभी नहीं उतारा जा सकता......पाक किताब कहती है उसके क़दमों के नीचे ही जन्नत है उसकी जितनी भी सेवा कि जा सके कम है..............इस उम्मीद में कि आप सबको पसंद आये......पेशे खिदमत है "तू ही तो है माँ"


जब मैं रोता था रातों को अक्सर उठकर 
तब मुझे बहलाने वाली तू ही तो है माँ,

मचल-मचल उठता था जब मैं किसी चीज़ को 
मेरी हर जिद पूरी करने वाली तू ही तो है माँ,

कहाँ था ज्ञान किसी भी बात का मुझको यहाँ 
मुझे दुनिया को दिखाने वाली तू ही तो है माँ,

चलते-चलते ही गिर जाया करता था जब मैं 
तब भी मुझे सँभालने वाली तू ही तो है माँ,

नहीं आने देती है मुझ तक दर्द की धूप को 
अपने आँचल में छुपाने वाली तू ही तो है माँ,

भर आता दिल जब भी दुनिया के दर्द से 
मेरे अश्कों को पोछने वाली तू ही तो है माँ,

इस ज़ालिम ज़माने में नहीं यकीं किसी पर 
मेरे लिए तो मेरा भरोसा बस तू ही तो है माँ,

घिर जाता हूँ जब मैं नाकामी के गहरे कुएँ में 
तब मुझे रौशनी दिखाने वाली तू ही तो है माँ,

नहीं जाता हूँ मैं उसे को ढूँढने किसी तीर्थ में 
मेरे लिए तो मेरी जन्नत बस तू ही तो है माँ,

नहीं चुका पायेगा क़र्ज़ तेरा कभी ये 'इमरान'
इसे जिंदगी बख्शने वाली बस तू ही तो है माँ,

जून 07, 2013

आवाजें

जिंदा रहना है यहाँ अगर 
तो चुप ही रहना सीखो........

कोई नहीं सुनता है 
गरीबों की सदा यहाँ 
यहाँ सुनी जाती है सिर्फ
सिक्को की आवाजें,  

रह जाती हैं अपनी जगह
खड़ी हुई ईमानदारी 
आगे बढ़ जाती हैं यहाँ 
खुशामद से भरी आवाजें, 

नाले में मिलती लाशें
गले के साथ ही साथ 
काट दी जाती हैं यहाँ 
बगावत से भरी आवाजें,

गला फाड़-फाड़ कर 
चिल्लाता है यहाँ झूठ 
और दबा दी जाती हैं 
सच से भरी आवाजें, 

कानून हो मुल्क का या 
फिर भरी हुई अदालत 
फरियादों को रौंद देती हैं
यहाँ रौब से भरी आवाजें,

जिंदा रहना है यहाँ अगर 
तो चुप ही रहना सीखो........